भगवान श्री गणेश जी प्रथम पूज्य क्यों है ? (God Ganesh)
प्राचीन काल की बात है - नैमिषारण्य क्षेत्र में ऋषि-महर्षि साधु-संतों का समाज जुड़ा था। उसमें श्रीसूतजी भी विद्यमान थे। शौनक जी ने उनकी सेवा में उपस्थित होकर निवेदन किया कि "हे अज्ञान रूप घोर तिमिर को नष्ट करने में करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाशमान श्रीसूतजी ! हमारे कानों के लिए अमृत के समान जीवन प्रदान करने वाले कथा तत्व का वर्णन कीजिये। हे सूतजी ! हमारे हृदयों में ज्ञान के प्रकाश की वृद्धि तथा भक्ति, वैराग्य और विवेक की उत्पत्ति जिस कथा से हो सकती हो, वह हमारे प्रति कहने कि कृपा करें।"
शौनक जी की जिज्ञासा से सूतजी बड़े प्रसन्न हुए। पुरातन इतिहासों के स्मरण से उनका शरीर पुलकायमान हो रहा था। वे कुछ देर उसी स्थिति में विराजमान रहकर कुछ विचार करते रहे और अंत में बोले - "शौनक जी ! इस विषय में आपके चित में बड़ी जिज्ञासा है। आप धन्य हैं जो सदैव ज्ञान की प्राप्ति में तत्पर रहते हुए विभिन्न पुराण-कथाओं की जिज्ञासा रखते हैं। आज मैं आपको ज्ञान के परम स्तोत्र श्री गणेश जी का जन्म-कर्म रूप चरित्र सुनाऊँगा। गणेशजी से ही सभी ज्ञानों, सभी विद्याओं का उदभव हुआ है। अब आप सावधान चित्त से विराजमान हों और श्री गणेशजी के ध्यान और नमस्कारपूर्वक उनका चरित्र श्रवण करें।"
कैसे हैं वे श्री गणेश जो सभी प्रकार की ब्रह्मविद्याओं को प्रदान करने वाले अर्थात ब्रह्म के सगुण और निर्गुण स्वरुप पर प्रकाश डालने और जीव-ब्रह्म का अभेद प्रतिपादन करने वाली विद्याओं के दाता हैं।
वे विघ्नों के समुद्रों को महर्षि अगस्त्य के समान शोषण करने में समर्थ हैं, इसलिए उनका नाम 'विघ्न-सागर-शोषक' के नाम से प्रसिद्ध है, मैं उन भगवान श्री गणेश जी को नमस्कार करता हूँ।
प्रथम पूजा के अधिकारी
उपरोक्त बात बोलकर सूतजी चुप हो गए और फिर कुछ समय पश्चात् बोले - "शौनक जी ! भगवान गणेशजी ही सर्वप्रथम पूजा-प्राप्ति के अधिकारी हैं। किसी भी देवता की पूजा करो, पहले उन्हीं को पूजना होगा।
शौनक जी ने निवेदन किया - "हे भगवन ! हे सूत ! सर्वप्रथम यह बताने की कृपा कीजिये कि गणेशजी को प्रथम पूजा का अधिकार किस प्रकार प्राप्त हुआ? इस विषय में मेरी बुद्धि मोह को प्राप्त हो रही है कि सृष्टि-रचियता ब्रह्माजी, पालनकर्ता भगवान् नारायण और संहारकर्ता शिवजी में से किसी को प्रथमपूजा का अधिकारी क्यों नहीं माना गया? यह त्रिदेव ही तो सबसे बड़े देवता माने जाते हैं।"
सूतजी ने कहा - शौनक जी ! यह भी एक रहस्य ही है। देखो, अधिकार मांगने से नहीं मिलता, इसके लिए योग्यता होनी चाहिए। संसार में अनेकों देवी-देवता पूजे जाते हैं। पहले जो जिसका इष्टदेव होता, वह उसी की पूजा किया करता था। इससे बड़े देवताओं के महत्व में कमी आने की आशंका होने लगी और देवताओं में परस्पर विवाद होने लगा। वे सभी एक साथ इस समस्या को सुलझाने शिवजी के पास पहुंचे और पूछा - हे प्रभु ! हम सब में प्रथम पूजा का अधिकारी कौन है?
शिवजी सोचने लगे और उन्हें एक युक्ति सूझी, उन्होंने कहा - देवगण ! इसका फैसला तथ्यों के आधार पर ही संभव है, अतः एक प्रतियोगिता का आयोजन होना चाहिए।
विश्व की परिक्रमा करने की प्रतियोगिता
सभी देवता शंकित-हृदय से शिवजी का मुख ताकने लगे, शिवजी उनके मन के भावों को समझ गए और बोले - 'घबराओ नहीं ! कोई कठिन परीक्षा नहीं ली जाएगी। बस, इतना ही करना है कि सभी अपने वाहनों पर विराजमान होकर संसार की परिक्रमा करो और फिर लौटकर यहीं आ जाओ। जो सबसे पहले लौटेगा, वही सर्वप्रथम पूजा का अधिकारी होगा।'
सभी देवता अपने वाहनों पर सवार होकर चले गए, परन्तु गणेशजी नहीं गए क्योंकि उनका वाहन मूषक (चूहा) था जिसके दम पर प्रतियोगिता में भाग लेना उनको मूर्खता लगा, जीतना की सोचना तो दूर कि बात थी। गणेश जी वहीँ रुक गए और बैठ गए कुछ देर बैठे रहने के बाद उन्हें एक युक्ति सूझी - "शिवजी स्वयं ही जगदात्मा हैं, यह संसार उन्हीं का प्रतिबिम्ब है, तो क्यों ना इन्हीं की परिक्रमा कर दी जाये। इनकी परिक्रमा करने से ही संसार की परिक्रमा हो जाएगी।"
ऐसा निश्चय कर उन्होंने मूषक पर चढ़ कर शिवजी की परिक्रमा कर ली और उनके समक्ष जा पहुंचे। शिवजी ने पूछा - "तुमने परिक्रमा पूरी कर ली?" उन्होंने उत्तर दिया - "जी !" शिवजी सोचने लगे कि ये तो यहीं घूम रहे थे फिर परिक्रमा कैसे पूरी कर ली?
देवताओं का परिक्रमा करके लौटना प्रारम्भ हुआ तो गणेशजी को वहीँ बैठा देख उनका माथा ठनका। फिर भी हिम्मत करके बोले - "अरे ! तुम विश्व की परिक्रमा के लिए नहीं गए?" गणेशजी ने कहा - "अरे, मैं कब का आ गया।" देवता बोले - "तुम्हे तो कहीं भी नहीं देखा?" गणेश जी ने उत्तर दिया - "देखते कहाँ से? समस्त संसार शिवजी में विद्यमान है, इनकी परिक्रमा करने से ही संसार की परिक्रमा पूर्ण हो गयी।"
सूतजी बोले - "शौनक ! इस प्रकार गणेशजी ने अपनी बुद्धि के बल पर ही विजय प्राप्त कर ली। उनका कथन सत्य था इसलिए कोई उनका विरोध करता भी तो कैसे? बस, उसी दिन से गणेशजी की प्रथम पूजा होने लगी।"
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